होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है
अहमद मुश्ताक़
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इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
मैं ने तराश कर तिरा चेहरा बना दिया
अहमद मुश्ताक़
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इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे
और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है
अहमद मुश्ताक़
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इस मअ'रके में इश्क़ बेचारा करेगा क्या
ख़ुद हुस्न को हैं जान के लाले पड़े हुए
अहमद मुश्ताक़
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इश्क़ में कौन बता सकता है
किस ने किस से सच बोला है
अहमद मुश्ताक़
जाने किस दम निकल आए तिरे रुख़्सार की धूप
मुद्दतों ध्यान तिरे साया-ए-दर पर रक्खा
अहमद मुश्ताक़
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जब शाम उतरती है क्या दिल पे गुज़रती है
साहिल ने बहुत पूछा ख़ामोश रहा पानी
अहमद मुश्ताक़
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