ख़ैर बदनाम तो पहले भी बहुत थे लेकिन
तुझ से मिलना था कि पर लग गए रुस्वाई को
अहमद मुश्ताक़
खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में
हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम
अहमद मुश्ताक़
किसी जानिब नहीं खुलते दरीचे
कहीं जाता नहीं रस्ता हमारा
अहमद मुश्ताक़
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
अहमद मुश्ताक़
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
क्यूँ तिरी याद का बादल मिरे सर पर आया
अहमद मुश्ताक़
मैं ने कहा कि देख ये मैं ये हवा ये रात
उस ने कहा कि मेरी पढ़ाई का वक़्त है
अहमद मुश्ताक़
मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी
ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो
अहमद मुश्ताक़