तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं
दोस्तों की भीड़ है तन्हा हूँ मैं
यासमीन ओ नस्तरन मेरा पता
ख़ुशबुओं के जिस्म पर लिखा हूँ मैं
पहले ही क्या कम तमाशे थे यहाँ
फिर नए मंज़र उठा लाया हूँ मैं
फिर वही मौसम पुराने हो गए
दिन ढले सरगोशियाँ सुनता हूँ मैं
कौन उतरती चढ़ती साँसों का अमीं
साया-ए-दीवार से लिपटा हूँ मैं
तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र
रास्तों के जाल में उलझा हूँ मैं
वो मिरी ख़ुश-फ़हमियाँ सब क्या हुईं
जाने कब से बे-हुनर ज़िंदा हूँ मैं
ग़ज़ल
तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं
आशुफ़्ता चंगेज़ी