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पता कहीं से तिरा अब के फिर लगा लाए | शाही शायरी
pata kahin se tera ab ke phir laga lae

ग़ज़ल

पता कहीं से तिरा अब के फिर लगा लाए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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पता कहीं से तिरा अब के फिर लगा लाए
सुहाने ख़्वाब नया मश्ग़ला उठा लाए

लगी थी आग तो ये भी तो उस की ज़द में थे
अजीब लोग हैं दामन मगर बचा लाए

चलो तो राह में कितने ही दरिया आते हैं
मगर ये क्या कि उन्हें अपने घर बहा लाए

तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
कुछ और साथ में परछाइयाँ लगा लाए

सुना है चेहरों पे बिखरी पड़ी हैं तहरीरें
उड़ा के कितने वरक़ देखें अब हवा लाए

न इब्तिदा की ख़बर और न इंतिहा मालूम
इधर उधर से सुना और बस उड़ा लाए