गर्म अज़-बस-कि है बाज़ार-ए-बुताँ ऐ ज़ाहिद
रश्क से टुकड़े हुआ है हज्र-ए-अस्वद भी
ताबाँ अब्दुल हई
एक बुलबुल भी चमन में न रही अब की फ़सल
ज़ुल्म ऐसा ही किया तू ने ऐ सय्याद कि बस
ताबाँ अब्दुल हई
दूँ सारी ख़ुदाई को एवज़ उन के मैं 'ताबाँ'
कोई मुझ सा बता दे तू ख़रीदार बुताँ का
ताबाँ अब्दुल हई
दुनिया कि नेक ओ बद से मुझे कुछ ख़बर नहीं
इतना नहीं जहाँ मैं कोई बे-ख़बर कि हम
ताबाँ अब्दुल हई
दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी
एक ही तेग़ लगा ऐसी ऐ जल्लाद कि बस
ताबाँ अब्दुल हई
देख क़ासिद को मिरे यार ने पूछा 'ताबाँ'
क्या मिरे हिज्र में जीता है वो ग़मनाक हनूज़
ताबाँ अब्दुल हई
दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
जल्द ले कर शराब आ साक़ी
ताबाँ अब्दुल हई
है क्या सबब कि यार न आया ख़बर के तईं
शायद किसी ने हाल हमारा कहा नहीं
ताबाँ अब्दुल हई
ब'अद मुद्दत के माह-रू आया
क्यूँ न उस के गले लगूँ 'ताबाँ'
ताबाँ अब्दुल हई