याँ तलक के है तिरे हिज्र में फ़रियाद कि बस
न हुआ तू भी कभी हाए ये इरशाद कि बस
एक बुलबुल भी चमन में न रही अब की फ़सल
ज़ुल्म ऐसा ही किया तू ने ऐ सय्याद कि बस
बे-सुतूँ खोद के सर फोड़ दिया जी अपना
काम ऐसा ही हुआ तुझ से ऐ फ़रहाद कि बस
दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी
एक ही तेग़ लगा ऐसी ऐ जल्लाद कि बस
इश्क़ में उस के बगूले कि तिरा ऐ 'ताबाँ'
ख़ाक अपनी को दिया याँ तईं बर्बाद कि बस
ग़ज़ल
याँ तलक के है तिरे हिज्र में फ़रियाद कि बस
ताबाँ अब्दुल हई