एक ही जाम को पिला साक़ी
अद्ल और होश ले गया साक़ी
अब्र है मुझ को मय पिला साक़ी
इस हवा में न जी कुढ़ा साक़ी
लब-ए-दरिया पे चाँदनी देखूँ
हो अगर मुझ से आश्ना साक़ी
सुब्ह आया शराब में मख़मूर
नींद से उठ के मुसमुसा साक़ी
सब के तईं तू ने मय पिलाई है
मैं तरसता ही रह गया साक़ी
क़हर है मय अगर न दे इस वक़्त
झूम आई है क्या घटा साक़ी
क्या मज़े से करूँ चमन की सैर
गरचे हो अब्र और मिरा साक़ी
दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
जल्द ले कर शराब आ साक़ी
गर तू 'ताबाँ' को मय पिलावेगा
तिरा एहसाँ न होगा क्या साक़ी
ग़ज़ल
एक ही जाम को पिला साक़ी
ताबाँ अब्दुल हई