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ताबाँ अब्दुल हई शायरी | शाही शायरी

ताबाँ अब्दुल हई शेर

67 शेर

मुझे आता है रोना ऐसी तन्हाई पे ऐ 'ताबाँ'
न यार अपना न दिल अपना न तन अपना न जाँ अपना

ताबाँ अब्दुल हई




मुझ से बीमार है मिरा ज़ालिम
ये सितम किस तरह सहूँ 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई




मोहब्बत तू मत कर दिल उस बेवफ़ा से
दिल उस बेवफ़ा से मोहब्बत तू मत कर

ताबाँ अब्दुल हई




मलूँ हों ख़ाक जूँ आईना मुँह पर
तिरी सूरत मुझे आती है जब याद

ताबाँ अब्दुल हई




मैं तो तालिब दिल से हूँगा दीन का
दौलत-ए-दुनिया मुझे मतलूब नहीं

ताबाँ अब्दुल हई




मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया
रातों के तईं कर के फ़रियाद बहुत रोया

ताबाँ अब्दुल हई




महफ़िल के बीच सुन के मिरे सोज़-ए-दिल का हाल
बे-इख़्तियार शम्अ के आँसू ढलक पड़े

ताबाँ अब्दुल हई




ले मेरी ख़बर चश्म मिरे यार की क्यूँ-कर
बीमार अयादत करे बीमार की क्यूँ-कर

ताबाँ अब्दुल हई




किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें
है वस्ल से ज़ियादा मज़ा इंतिज़ार का

ताबाँ अब्दुल हई