अब तो ले दे के यही काम है इन आँखों का
जिन को देखा नहीं उन ख़्वाबों की ताबीर करें
शहरयार
आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
ख़ौफ़ के मारे जुदा शाख़ से पत्ता न हुआ
शहरयार
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
मैं अपने साए से कल रात डर गया यारो
शहरयार
अक्स-ए-याद-ए-यार को धुँदला किया है
मैं ने ख़ुद को जान कर तन्हा किया है
शहरयार
बहुत शोर था जब समाअ'त गई
बहुत भीड़ थी जब अकेले हुए
शहरयार
बताऊँ किस तरह अहबाब को आँखें जो ऐसी हैं
कि कल पलकों से टूटी नींद कि किर्चें समेटीं हैं
शहरयार
बे-नाम से इक ख़ौफ़ से दिल क्यूँ है परेशाँ
जब तय है कि कुछ वक़्त से पहले नहीं होगा
शहरयार
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है
शहरयार
चल चल के थक गया है कि मंज़िल नहीं कोई
क्यूँ वक़्त एक मोड़ पे ठहरा हुआ सा है
शहरयार