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शहरयार शायरी | शाही शायरी

शहरयार शेर

102 शेर

देखने के लिए इक चेहरा बहुत होता है
आँख जब तक है तुझे सिर्फ़ तुझे देखूँगा

शहरयार




दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
ख़्वाब देखो कि हक़ीक़त से पशीमानी न हो

शहरयार




दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं
तू नहीं आया तो समझा तू यहाँ होगा नहीं

शहरयार




एक ही मिट्टी से हम दोनों बने हैं लेकिन
तुझ में और मुझ में मगर फ़ासला यूँ कितना है

शहरयार




ग़म की दौलत बड़ी मुश्किल से मिला करती है
सौंप दो हम को अगर तुम से निगहबानी न हो

शहरयार




गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

शहरयार




घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है

शहरयार




गुलाब टहनी से टूटा ज़मीन पर न गिरा
करिश्मे तेज़ हवा के समझ से बाहर हैं

शहरयार




है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'
तरसोगे कल हुजूम में तन्हाई के लिए

शहरयार