EN اردو
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो | शाही शायरी
ajib saneha mujh par guzar gaya yaro

ग़ज़ल

अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो

शहरयार

;

अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
मैं अपने साए से कल रात डर गया यारो

हर एक नक़्श तमन्ना का हो गया धुँदला
हर एक ज़ख़्म मिरे दिल का भर गया यारो

भटक रही थी जो कश्ती वो ग़र्क़-ए-आब हुई
चढ़ा हुआ था जो दरिया उतर गया यारो

वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
सुना है आज कोई शख़्स मर गया यारो

मैं जिस को लिखने के अरमान में जिया अब तक
वरक़ वरक़ वो फ़साना बिखर गया यारो