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शहरयार शायरी | शाही शायरी

शहरयार शेर

102 शेर

हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
अज्दाद कहीं पेड़ भी कुछ बो गए होते

शहरयार




आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
ख़ौफ़ के मारे जुदा शाख़ से पत्ता न हुआ

शहरयार




है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है

शहरयार




है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'
तरसोगे कल हुजूम में तन्हाई के लिए

शहरयार




गुलाब टहनी से टूटा ज़मीन पर न गिरा
करिश्मे तेज़ हवा के समझ से बाहर हैं

शहरयार




घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है

शहरयार




गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

शहरयार




ग़म की दौलत बड़ी मुश्किल से मिला करती है
सौंप दो हम को अगर तुम से निगहबानी न हो

शहरयार




एक ही मिट्टी से हम दोनों बने हैं लेकिन
तुझ में और मुझ में मगर फ़ासला यूँ कितना है

शहरयार