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ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से | शाही शायरी
zaKHmon ko rafu kar len dil shad karen phir se

ग़ज़ल

ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से

शहरयार

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ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
ख़्वाबों की कोई दुनिया आबाद करें फिर से

मुद्दत हुई जीने का एहसास नहीं होता
दिल उन से तक़ाज़ा कर बेदाद करें फिर से

मुजरिम के कटहरे में फिर हम को खड़ा कर दो
हो रस्म-ए-कोहन ताज़ा फ़रियाद करें फिर से

ऐ अहल-ए-जुनूँ देखो ज़ंजीर हुए साए
हम कैसे उन्हें सोचो आज़ाद करें फिर से

अब जी के बहलने की है एक यही सूरत
बीती हुई कुछ बातें हम याद करें फिर से