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परवीन शाकिर शायरी | शाही शायरी

परवीन शाकिर शेर

110 शेर

बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी

परवीन शाकिर




आमद पे तेरी इत्र ओ चराग़ ओ सुबू न हों
इतना भी बूद-ओ-बाश को सादा नहीं किया

परवीन शाकिर




अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ

परवीन शाकिर




अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
रोज़ इक मौत नए तर्ज़ की ईजाद करे

परवीन शाकिर




अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई

परवीन शाकिर




अजब नहीं है कि दिल पर जमी मिली काई
बहुत दिनों से तो ये हौज़ साफ़ भी न हुआ

परवीन शाकिर




अब्र बरसे तो इनायत उस की
शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है

परवीन शाकिर




अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं
वो ताँक-झाँक का मासूम सिलसिला भी गया

परवीन शाकिर




अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई

परवीन शाकिर