थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
जी बहलता नहीं ऐ दोस्त तिरी याद से भी
परवीन शाकिर
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मिरा तन मोर बन कर नाचता है
परवीन शाकिर
तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
कितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर
परवीन शाकिर
तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ
उलझ रहा है मिरे फ़ैसलों का रेशम फिर
परवीन शाकिर
तू बदलता है तो बे-साख़्ता मेरी आँखें
अपने हाथों की लकीरों से उलझ जाती हैं
परवीन शाकिर
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
जी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था
परवीन शाकिर
उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
परवीन शाकिर
उस ने मुझे दर-अस्ल कभी चाहा ही नहीं था
ख़ुद को दे कर ये भी धोका, देख लिया है
परवीन शाकिर
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
परवीन शाकिर