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परवीन शाकिर शायरी | शाही शायरी

परवीन शाकिर शेर

110 शेर

नहीं नहीं ये ख़बर दुश्मनों ने दी होगी
वो आए आ के चले भी गए मिले भी नहीं

परवीन शाकिर




पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
दस्त-बस्ता शहर में खोले मिरी ज़ंजीर कौन

परवीन शाकिर




पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह

परवीन शाकिर




क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था
पर क्या करें कि अब के सफ़र ही अजीब था

परवीन शाकिर




राय पहले से बना ली तू ने
दिल में अब हम तिरे घर क्या करते

परवीन शाकिर




रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद

परवीन शाकिर




रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया

परवीन शाकिर




रफ़ाक़तों के नए ख़्वाब ख़ुशनुमा हैं मगर
गुज़र चुका है तिरे ए'तिबार का मौसम

परवीन शाकिर




रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
जो छाँव मेहरबाँ हो उसे अपना घर न जान

परवीन शाकिर