धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए
ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए
परवीन शाकिर
दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर इस का
वो मुसाफ़िर इसे हर सम्त से बर्बाद करे
परवीन शाकिर
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन
परवीन शाकिर
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
ज़िंदगी की बेबसी का इस्तिआरा देखना
परवीन शाकिर
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा
परवीन शाकिर
ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह
परवीन शाकिर
ग़ैर-मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह
परवीन शाकिर
गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था
मिरा और उस का राब्ता तो हाथ और दुआ का था
परवीन शाकिर
घर आप ही जगमगा उठेगा
दहलीज़ पे इक क़दम बहुत है
परवीन शाकिर