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बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना | शाही शायरी
bechain bahut phirna ghabrae hue rahna

ग़ज़ल

बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना

मुनीर नियाज़ी

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बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना
इक आग सी जज़्बों की दहकाए हुए रहना

छलकाए हुए चलना ख़ुशबू लब-ए-लालीं की
इक बाग़ सा साथ अपने महकाए हुए रहना

उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए
पर्दे में चले जाना शरमाए हुए रहना

इक शाम सी कर रखना काजल के करिश्मे से
इक चाँद सा आँखों में चमकाए हुए रहना

आदत ही बना ली है तुम ने तो 'मुनीर' अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना