गई बहार मगर अपनी बे-ख़ुदी है वही
समझ रहा हूँ कि अब तक बहार बाक़ी है
मुबारक अज़ीमाबादी
दिन भी है रात भी है सुब्ह भी है शाम भी है
इतने वक़्तों में कोई वक़्त-ए-मुलाक़ात भी है
मुबारक अज़ीमाबादी
दिल में आने के 'मुबारक' हैं हज़ारों रस्ते
हम बताएँ उसे राहें कोई हम से पूछे
मुबारक अज़ीमाबादी
दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ
ऐसे कामों के भी आग़ाज़ कहीं छुपते हैं
मुबारक अज़ीमाबादी
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
इक तिरी ज़ुल्फ़ कि क़दमों से लगी रहती है
मुबारक अज़ीमाबादी
बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
दामन किधर किधर है गिरेबाँ कहाँ कहाँ
मुबारक अज़ीमाबादी
बेवफ़ा उम्र दग़ाबाज़ जवानी निकली
न यही रहती है ज़ालिम न वही रहती है
मुबारक अज़ीमाबादी
बेश ओ कम का शिकवा साक़ी से 'मुबारक' कुफ़्र था
दौर में सब के ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ पैमाना रहा
मुबारक अज़ीमाबादी
असर हो या न हो वाइज़ बयाँ में
मगर चलती तो है तेरी ज़बाँ ख़ूब
मुबारक अज़ीमाबादी