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मुबारक अज़ीमाबादी शायरी | शाही शायरी

मुबारक अज़ीमाबादी शेर

77 शेर

अपनी सी करो तुम भी अपनी सी करें हम भी
कुछ तुम ने भी ठानी है कुछ हम ने भी ठानी है

मुबारक अज़ीमाबादी




अब वही सैद है जो था सय्याद
नाला बुलबुल का बे-असर न हुआ

मुबारक अज़ीमाबादी




आप का इख़्तियार है सब पर
आप पर इख़्तियार किस का है

मुबारक अज़ीमाबादी




आने में कभी आप से जल्दी नहीं होती
जाने में कभी आप तवक़्क़ुफ़ नहीं करते

मुबारक अज़ीमाबादी




जो क़यामत का नहीं दिन वो मिरा दिन कैसा
जो तड़प कर न कटी हो वो मिरी रात नहीं

मुबारक अज़ीमाबादी




ख़बर इतनी तो है झोंके तिरे बाद-ए-ख़िज़ाँ पहुँचे
ख़ुदा मालूम तिनके आशियाने के कहाँ पहुँचे

मुबारक अज़ीमाबादी




कली रह गई ना-शगुफ़्ता हमारी
गिला रह गया ये नसीम-ए-चमन से

मुबारक अज़ीमाबादी




कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को
आज हज़रत जा के मस्जिद में मुसलमाँ हो गए

मुबारक अज़ीमाबादी




कहीं ऐसा न हो कम-बख़्त में जान आ जाए
इस लिए हाथ में लेते मिरी तस्वीर नहीं

मुबारक अज़ीमाबादी