EN اردو
मुबारक अज़ीमाबादी शायरी | शाही शायरी

मुबारक अज़ीमाबादी शेर

77 शेर

फिर न दरमाँ का कभी नाम 'मुबारक' लेना
कुफ़्र है दर्द-ए-मोहब्बत का मुदावा करना

मुबारक अज़ीमाबादी




मस्जिद की सर-ए-राह बिना डाल न ज़ाहिद
इस रोक से होने के नहीं कू-ए-बुताँ बंद

मुबारक अज़ीमाबादी




मेहराब-ब-इबादत ख़म-ए-अबरू है बुतों का
कर बैठे हैं काबे को मुसलमान फ़रामोश

मुबारक अज़ीमाबादी




मेहरबानी चारासाज़ों की बढ़ी
जब बढ़ा दरमाँ तो बीमारी बढ़ी

मुबारक अज़ीमाबादी




मेरी दुश्वारी है दुश्वारी मिरी
मेरी मुश्किल आप की मुश्किल नहीं

मुबारक अज़ीमाबादी




मिलो मिलो न मिलो इख़्तियार है तुम को
इस आरज़ू के सिवा और आरज़ू क्या है

मुबारक अज़ीमाबादी




मिरी ख़ाक भी उड़ेगी बा-अदब तिरी गली में
तिरे आस्ताँ से ऊँचा न मिरा ग़ुबार होगा

मुबारक अज़ीमाबादी




मोहब्बत में वफ़ा की हद जफ़ा की इंतिहा कैसी
'मुबारक' फिर न कहना ये सितम कोई सहे कब तक

मुबारक अज़ीमाबादी




मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
एक दिन मौत की उम्मीद पे जीना होगा

मुबारक अज़ीमाबादी