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सितम करो न करो इख़्तियार बाक़ी है | शाही शायरी
sitam karo na karo iKHtiyar baqi hai

ग़ज़ल

सितम करो न करो इख़्तियार बाक़ी है

मुबारक अज़ीमाबादी

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सितम करो न करो इख़्तियार बाक़ी है
जो हम नहीं तो हमारा मज़ार बाक़ी है

गई बहार मगर अपनी बे-ख़ुदी है वही
समझ रहा हूँ कि अब तक बहार बाक़ी है

हज़ार मरहला-ए-इंतिज़ार तय भी हुए
हज़ार मरहला-ए-इंतिज़ार बाक़ी है

शिकस्त-ए-तौबा है ऐसी सवाब में दाख़िल
अभी से तौबा 'मुबारक' बहार बाक़ी है