सितम करो न करो इख़्तियार बाक़ी है
जो हम नहीं तो हमारा मज़ार बाक़ी है
गई बहार मगर अपनी बे-ख़ुदी है वही
समझ रहा हूँ कि अब तक बहार बाक़ी है
हज़ार मरहला-ए-इंतिज़ार तय भी हुए
हज़ार मरहला-ए-इंतिज़ार बाक़ी है
शिकस्त-ए-तौबा है ऐसी सवाब में दाख़िल
अभी से तौबा 'मुबारक' बहार बाक़ी है
ग़ज़ल
सितम करो न करो इख़्तियार बाक़ी है
मुबारक अज़ीमाबादी