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मुबारक अज़ीमाबादी शायरी | शाही शायरी

मुबारक अज़ीमाबादी शेर

77 शेर

दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ
ऐसे कामों के भी आग़ाज़ कहीं छुपते हैं

मुबारक अज़ीमाबादी




आइना सामने अब आठ पहर रहता है
कहीं ऐसा न हो ये मद्द-ए-मुक़ाबिल हो जाए

मुबारक अज़ीमाबादी




बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
दामन किधर किधर है गिरेबाँ कहाँ कहाँ

मुबारक अज़ीमाबादी




बेवफ़ा उम्र दग़ाबाज़ जवानी निकली
न यही रहती है ज़ालिम न वही रहती है

मुबारक अज़ीमाबादी




बेश ओ कम का शिकवा साक़ी से 'मुबारक' कुफ़्र था
दौर में सब के ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ पैमाना रहा

मुबारक अज़ीमाबादी




असर हो या न हो वाइज़ बयाँ में
मगर चलती तो है तेरी ज़बाँ ख़ूब

मुबारक अज़ीमाबादी




अपनी सी करो तुम भी अपनी सी करें हम भी
कुछ तुम ने भी ठानी है कुछ हम ने भी ठानी है

मुबारक अज़ीमाबादी




अब वही सैद है जो था सय्याद
नाला बुलबुल का बे-असर न हुआ

मुबारक अज़ीमाबादी




आप का इख़्तियार है सब पर
आप पर इख़्तियार किस का है

मुबारक अज़ीमाबादी