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क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे | शाही शायरी
kyun kiya karte hain aahen koi humse puchhe

ग़ज़ल

क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे

मुबारक अज़ीमाबादी

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क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे
कर गईं क्या वो निगाहें कोई हम से पूछे

ले के दिल उन के मुकरने की अदा क्या कहिए
क्यूँ पलटती हैं निगाहें कोई हम से पूछे

दोस्त दुश्मन को बनाना कोई तुम से सीखे
दोस्ती कैसी निबाहें कोई हम से पूछे

नीची नज़रें किए आते हो जहाँ से समझे
झेंपती क्यूँ हैं निगाहें कोई हम से पूछे

दिल में आने के 'मुबारक' हैं हज़ारों रस्ते
हम बताएँ उसे राहें कोई हम से पूछे