जिनाँ की कहते हैं यूँ मुझ से हज़रत-ए-वाइज़
कि जैसे देखी न हो यार की गली मैं ने
मुबारक अज़ीमाबादी
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जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
बलाएँ ले रहा हूँ अपने सर की
मुबारक अज़ीमाबादी
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जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत में न हो अपना शुमार
इम्तिहाँ इस लिए ज़ालिम ने हमारा न किया
मुबारक अज़ीमाबादी
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इस भरी महफ़िल में हम से दावर-ए-महशर न पूछ
हम कहेंगे तुझ से अपनी दास्ताँ सब से अलग
मुबारक अज़ीमाबादी
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इक तिरी बात कि जिस बात की तरदीद मुहाल
इक मिरा ख़्वाब कि जिस ख़्वाब की ताबीर नहीं
मुबारक अज़ीमाबादी
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