बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
दामन किधर किधर है गिरेबाँ कहाँ कहाँ
निकले उस अंजुमन से तो पहलू में दिल न था
आए जो ढूँडने तो वो बोले यहाँ कहाँ
ऐसे में क्या चले हो 'मुबारक' चमन को तुम
बुलबुल कहाँ बहार कहाँ बाग़बाँ कहाँ
ग़ज़ल
बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
मुबारक अज़ीमाबादी