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बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ | शाही शायरी
bikhri hui hai yun meri wahshat ki dastan

ग़ज़ल

बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ

मुबारक अज़ीमाबादी

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बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
दामन किधर किधर है गिरेबाँ कहाँ कहाँ

निकले उस अंजुमन से तो पहलू में दिल न था
आए जो ढूँडने तो वो बोले यहाँ कहाँ

ऐसे में क्या चले हो 'मुबारक' चमन को तुम
बुलबुल कहाँ बहार कहाँ बाग़बाँ कहाँ