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गिरह में रिश्वत का माल रखिए | शाही शायरी
girah mein rishwat ka mal rakhiye

ग़ज़ल

गिरह में रिश्वत का माल रखिए

मोहम्मद अल्वी

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गिरह में रिश्वत का माल रखिए
ज़रूरतों को बहाल रखिए

बिछाए रखिए अँधेरा हर-सू
सितारा कोई उछाल रखिए

अरे ये दिल और इतना ख़ाली
कोई मुसीबत ही पाल रखिए

जहाँ कि बस इक तिलिस्म सा है
न टूट जाए ख़याल रखिए

तुड़ा-मुड़ा है मगर ख़ुदा है
इसे तो साहब सँभाल रखिए

तमाम रंजिश को दिल से 'अल्वी'
वो आ रहा है निकाल रखिए