गिरह में रिश्वत का माल रखिए
ज़रूरतों को बहाल रखिए
बिछाए रखिए अँधेरा हर-सू
सितारा कोई उछाल रखिए
अरे ये दिल और इतना ख़ाली
कोई मुसीबत ही पाल रखिए
जहाँ कि बस इक तिलिस्म सा है
न टूट जाए ख़याल रखिए
तुड़ा-मुड़ा है मगर ख़ुदा है
इसे तो साहब सँभाल रखिए
तमाम रंजिश को दिल से 'अल्वी'
वो आ रहा है निकाल रखिए
ग़ज़ल
गिरह में रिश्वत का माल रखिए
मोहम्मद अल्वी