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ख़ुमार बाराबंकवी शायरी | शाही शायरी

ख़ुमार बाराबंकवी शेर

39 शेर

गुज़रे हैं मय-कदे से जो तौबा के ब'अद हम
कुछ दूर आदतन भी क़दम डगमगाए हैं

ख़ुमार बाराबंकवी




आज नागाह हम किसी से मिले
बा'द मुद्दत के ज़िंदगी से मिले

today I chanced on someone unexpectedly
it was after ages life was face to face with me

ख़ुमार बाराबंकवी




दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए
सामने आइना रख लिया कीजिए

ख़ुमार बाराबंकवी




दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए

ख़ुमार बाराबंकवी




दुश्मनों से पशेमान होना पड़ा है
दोस्तों का ख़ुलूस आज़माने के बाद

ख़ुमार बाराबंकवी




चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रौशनी है

ख़ुमार बाराबंकवी




भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए

ख़ुमार बाराबंकवी




अक़्ल ओ दिल अपनी अपनी कहें जब 'ख़ुमार'
अक़्ल की सुनिए दिल का कहा कीजिए

ख़ुमार बाराबंकवी




ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही

ख़ुमार बाराबंकवी