EN اردو
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है | शाही शायरी
na haara hai ishq aur na duniya thaki hai

ग़ज़ल

न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है

ख़ुमार बाराबंकवी

;

न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है

सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है

चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रौशनी है

अरे ओ जफ़ाओं पे चुप रहने वालो
ख़मोशी जफ़ाओं की ताईद भी है

मिरे राहबर मुझ को गुमराह न कर दे
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है

'ख़ुमार'-ए-बला-नोश कि तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदों की नज़र लग गई है