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ख़ुमार बाराबंकवी शायरी | शाही शायरी

ख़ुमार बाराबंकवी शेर

39 शेर

हटाए थे जो राह से दोस्तों की
वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं

ख़ुमार बाराबंकवी




इक गुज़ारिश है हज़रत-ए-नासेह
आप अब और कोई काम करें

O preacher just one supplication
please find an alternate vocation

ख़ुमार बाराबंकवी




इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

ख़ुमार बाराबंकवी