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इरफ़ान सिद्दीक़ी शायरी | शाही शायरी

इरफ़ान सिद्दीक़ी शेर

79 शेर

है बहुत कुछ मिरी ताबीर की दुनिया तुझ में
फिर भी कुछ है कि जो ख़्वाबों के जहाँ से कम है

इरफ़ान सिद्दीक़ी




एक मैं हूँ कि इस आशोब-ए-नवा में चुप हूँ
वर्ना दुनिया मिरे ज़ख़्मों की ज़बाँ बोलती है

इरफ़ान सिद्दीक़ी




एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे

इरफ़ान सिद्दीक़ी




देख लेता है तो खिलते चले जाते हैं गुलाब
मेरी मिट्टी को ख़ुश-आसार किया है उस ने

इरफ़ान सिद्दीक़ी




दौलत-ए-सर हूँ सो हर जीतने वाला लश्कर
तश्त में रखता है नेज़े पे सजाता है मुझे

इरफ़ान सिद्दीक़ी




हम सब आईना-दर-आईना-दर-आईना हैं
क्या ख़बर कौन कहाँ किस की तरफ़ देखता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी




बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं
कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी




अपने किस काम में लाएगा बताता भी नहीं
हम को औरों पे गँवाना भी नहीं चाहता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी




अपने चारों सम्त दीवारें उठाना रात दिन
रात दिन फिर सारी दीवारों में दर करना मुझे

इरफ़ान सिद्दीक़ी