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इरफ़ान सिद्दीक़ी शायरी | शाही शायरी

इरफ़ान सिद्दीक़ी शेर

79 शेर

कहा था तुम ने कि लाता है कौन इश्क़ की ताब
सो हम जवाब तुम्हारे सवाल ही के तो हैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी




कभी जो ज़हमत-ए-कार-ए-रफ़ू नहीं करता
हमारे ज़ख़्म उसी चारागर के नाम तमाम

इरफ़ान सिद्दीक़ी




जो तीर बूढ़ों की फ़रियाद तक नहीं सुनते
तो उन के सामने बच्चों का मुस्कुराना क्या

इरफ़ान सिद्दीक़ी




जो कुछ हुआ वो कैसे हुआ जानता हूँ मैं
जो कुछ नहीं हुआ वो बता क्यूँ नहीं हुआ

इरफ़ान सिद्दीक़ी




जिस्म की रानाइयों तक ख़्वाहिशों की भीड़ है
ये तमाशा ख़त्म हो जाए तो घर जाएँगे लोग

इरफ़ान सिद्दीक़ी




जाने क्या ठान के उठता हूँ निकलने के लिए
जाने क्या सोच के दरवाज़े से लौट आता हूँ

इरफ़ान सिद्दीक़ी




जान हम कार-ए-मोहब्बत का सिला चाहते थे
दिल-ए-सादा कोई मज़दूर है उजरत कैसी

इरफ़ान सिद्दीक़ी




आज तक उन की ख़ुदाई से है इंकार मुझे
मैं तो इक उम्र से काफ़िर हूँ सनम जानते हैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी




हू का आलम है गिरफ़्तारों की आबादी में
हम तो सुनते थे कि ज़ंजीर-ए-गिराँ बोलती है

इरफ़ान सिद्दीक़ी