वो हम नहीं थे तो फिर कौन था सर-ए-बाज़ार
जो कह रहा था कि बिकना हमें गवारा नहीं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वो जिस के नाम की निस्बत से रौशनी था वजूद
खटक रहा है वही आफ़्ताब आँखों में
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वो क्या मंज़िल जहाँ से रास्ते आगे निकल जाएँ
सो अब फिर इक सफ़र का सिलसिला करना पड़ेगा
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे
गली गली मिरी रुस्वाइयों का साथी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
यही लहजा था कि मेआर-ए-सुख़न ठहरा था
अब इसी लहजा-ए-बे-बाक से ख़ौफ़ आता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
यही लौ थी कि उलझती रही हर रात के साथ
अब के ख़ुद अपनी हवाओं में बुझा चाहती है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ये बस्ती जानी पहचानी बहुत है
यहाँ वा'दों की अर्ज़ानी बहुत है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ
दुआ के दिन हैं मुसलसल दुआ किए जाएँ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ये मोजज़ा भी किसी की दुआ का लगता है
ये शहर अब भी उसी बे-वफ़ा का लगता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़