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ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ | शाही शायरी
ye bastiyan hain ki maqtal dua kiye jaen

ग़ज़ल

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ
दुआ के दिन हैं मुसलसल दुआ किए जाएँ

कोई फ़ुग़ाँ कोई नाला कोई बुका कोई बैन
खुलेगा बाब-ए-मुक़फ़्फ़ल दुआ किए जाएँ

ये इज़्तिराब ये लम्बा सफ़र ये तन्हाई
ये रात और ये जंगल दुआ किए जाएँ

बहाल हो के रहेगी फ़ज़ा-ए-ख़ित्ता-ए-ख़ैर
ये हब्स होगा मोअ'त्तल दुआ किए जाएँ

गुज़िश्तगान-ए-मोहब्बत के ख़्वाब की सौगंद
वो ख़्वाब होगा मुकम्मल दुआ किए जाएँ

हवाए सरकश ओ सफ़्फ़ाक के मुक़ाबिल भी
ये दिल बुझेंगे न मिशअल दुआ किए जाएँ

ग़ुबार उड़ाती झुलसती हुई ज़मीनों पर
उमँड के आएँगे बादल दुआ किए जाएँ

क़ुबूल होना मुक़द्दर है हर्फ़-ए-ख़ालिस का
हर एक आन हर इक पल दुआ किए जाएँ