दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो
कोई तो हो जो मिरी वहशतों का साथी हो
मैं उस से झूट भी बोलूँ तो मुझ से सच बोले
मिरे मिज़ाज के सब मौसमों का साथी हो
मैं उस के हाथ न आऊँ वो मेरा हो के रहे
मैं गिर पड़ूँ तो मिरी पस्तियों का साथी हो
वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे
गली गली मिरी रुस्वाइयों का साथी हो
करे कलाम जो मुझ से तो मेरे लहजे में
मैं चुप रहूँ तो मेरे तेवरों का साथी हो
मैं अपने आप को देखूँ वो मुझ को देखे जाए
वो मेरे नफ़्स की गुमराहियों का साथी हो
वो ख़्वाब देखे तो देखे मिरे हवाले से
मिरे ख़याल के सब मंज़रों का साथी हो
ग़ज़ल
दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़