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अंजुम ख़लीक़ शायरी | शाही शायरी

अंजुम ख़लीक़ शेर

39 शेर

हाथ आएगा क्या साहिल-ए-लब से हमें 'अंजुम'
जब दिल का समुंदर ही गुहर-बार नहीं है

अंजुम ख़लीक़




हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
हम जैसा मगर ज़ौक़-ए-क़वाफ़ी नहीं रखते

अंजुम ख़लीक़




हम ऐसे लोग बहुत ख़ुश-गुमान होते हैं
ये दिल ज़रूर तिरा ए'तिबार कर लेगा

अंजुम ख़लीक़




अगर आता हूँ साहिल पर तो आँधी घेर लेती है
समुंदर में उतरता हूँ तो तुग़्यानी नहीं जाती

अंजुम ख़लीक़




इंसान की निय्यत का भरोसा नहीं कोई
मिलते हो तो इस बात को इम्कान में रखना

अंजुम ख़लीक़




जिन को कहा न जा सका जिन को सुना नहीं गया
वो भी हैं कुछ हिकायतें उन को भी तू शुमार कर

अंजुम ख़लीक़




कहो क्या बात करती है कभी सहरा की ख़ामोशी
कहा उस ख़ामुशी में भी तो इक तक़रीर होती है

अंजुम ख़लीक़




कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है
कहा माँ की दुआओं में बड़ी तासीर होती है

अंजुम ख़लीक़




कैसा फ़िराक़ कैसी जुदाई कहाँ का हिज्र
वो जाएगा अगर तो ख़यालों में आएगा

अंजुम ख़लीक़