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अंजुम ख़लीक़ शायरी | शाही शायरी

अंजुम ख़लीक़ शेर

39 शेर

इक ग़ज़ल लिक्खी तो ग़म कोई पुराना जागा
फिर उसी ग़म के सबब एक ग़ज़ल और कही

अंजुम ख़लीक़




अगर आता हूँ साहिल पर तो आँधी घेर लेती है
समुंदर में उतरता हूँ तो तुग़्यानी नहीं जाती

अंजुम ख़लीक़




हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
हम जैसा मगर ज़ौक़-ए-क़वाफ़ी नहीं रखते

अंजुम ख़लीक़




हाथ आएगा क्या साहिल-ए-लब से हमें 'अंजुम'
जब दिल का समुंदर ही गुहर-बार नहीं है

अंजुम ख़लीक़




फ़िराक़-रुत में भी कुछ लज़्ज़तें विसाल की हैं
ख़याल ही में तिरे ख़ाल-ओ-ख़द उभारा करें

अंजुम ख़लीक़




बीते हुए लम्हात को पहचान में रखना
मुरझाए हुए फूल भी गुल-दान में रखना

अंजुम ख़लीक़




बस ऐ निगार-ए-ज़ीस्त यक़ीं आ गया हमें
ये तेरी बे-रुख़ी ये तअम्मुल न जाएगा

अंजुम ख़लीक़




बहुत साबित-क़दम निकलें गए वक़्तों की तहज़ीबें
कि अब उन के हवालों से खंडर आबाद होते हैं

अंजुम ख़लीक़




अज़िय्यतों की भी अपनी ही एक लज़्ज़त है
मैं शहर शहर फिरूँ नेकियाँ तलाश करूँ

अंजुम ख़लीक़