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अंजुम ख़लीक़ शायरी | शाही शायरी

अंजुम ख़लीक़ शेर

39 शेर

ख़ातिर से जो करना पड़ी कज-फ़हम की ताईद
लगता था कि इंकार-कुशी एक हुनर है

अंजुम ख़लीक़




ख़ुद को अज़िय्यतें न दे मुझ को अज़िय्यतें न दे
ख़ुद पे भी इख़्तियार रख मुझ पे भी ए'तिबार कर

अंजुम ख़लीक़




ख़ुमार-ए-क़ुर्बत-ए-मंज़िल था ना-रसी का जवाज़
गली में आ के मैं उस का मकान भूल गया

अंजुम ख़लीक़