ख़ातिर से जो करना पड़ी कज-फ़हम की ताईद
लगता था कि इंकार-कुशी एक हुनर है
अंजुम ख़लीक़
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ख़ुद को अज़िय्यतें न दे मुझ को अज़िय्यतें न दे
ख़ुद पे भी इख़्तियार रख मुझ पे भी ए'तिबार कर
अंजुम ख़लीक़
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ख़ुमार-ए-क़ुर्बत-ए-मंज़िल था ना-रसी का जवाज़
गली में आ के मैं उस का मकान भूल गया
अंजुम ख़लीक़
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