जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
आती जाती है जा-ब-जा बदली
साक़िया जल्द आ हवा बदली
इमाम बख़्श नासिख़
सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
मोहम्मद अल्वी
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
क़ैसर-उल जाफ़री
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
क़तील शिफ़ाई