EN اردو
ख़ार देहलवी शायरी | शाही शायरी

ख़ार देहलवी शेर

9 शेर

बरहमी हुस्न को कुछ और जिला देती है
वो जमाली तेरा चेहरा वो जलाली आँखें

ख़ार देहलवी




चश्म-ए-गिर्यां की आबयारी से
दिल के दाग़ों पे फिर बहार आई

ख़ार देहलवी




चुपके से सह रहा हूँ सितम तेरे बेवफ़ा
मेरी ख़ता तो जब हो कि चूँ कर रहा हूँ मैं

ख़ार देहलवी




'ख़ार' उल्फ़त की बात जाने दो
ज़िंदगी किस को साज़गार आई

ख़ार देहलवी




मैं ने माना कि अदू भी तिरा शैदाई है
फ़र्क़ होता है फ़िदा होने में मर जाने में

ख़ार देहलवी




मोहब्बत ज़ुल्फ़ का आसेब जादू है निगाहों का
मोहब्बत फ़ित्ना-ए-महशर बला-ए-ना-गहानी है

ख़ार देहलवी




सच तो ये है कि दुआ ने न दवा ने रक्खा
हम को ज़िंदा तिरे दामन की हवा ने रक्खा

ख़ार देहलवी




उट्ठे न बैठ कर कभी कू-ए-हबीब से
उस दर पे क्या गए कि उसी दर के हो गए

ख़ार देहलवी




ये नगरी हुस्न वालों की अजब नगरी है ऐ हमदम
कि इस नगरी में आहों की भी तासीरें बदलती हैं

ख़ार देहलवी