देखता रहता हूँ मैं तेरी ग़ज़ाली आँखें
देख तो तू भी ज़रा मेरी सवाली आँखें
चश्म-ए-आहू से न नर्गिस से है तश्बीह दुरुस्त
हैं मिसाल आप ही वो अपनी निराली आँखें
बरहमी हुस्न को कुछ और जिला देती है
वो जमाली तेरा चेहरा वो जलाली आँखें
आ के हर रोज़ तसव्वुर में बना जाती है
एक रंगीन सी तस्वीर ख़याली आँखें
ख़त पढ़े या न पढ़े आए न आए वो शोख़
'ख़ार' क्यूँ भेज न दें देखने वाली आँखें
ग़ज़ल
देखता रहता हूँ मैं तेरी ग़ज़ाली आँखें
ख़ार देहलवी