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देखता रहता हूँ मैं तेरी ग़ज़ाली आँखें | शाही शायरी
dekhta rahta hun main teri ghazali aankhen

ग़ज़ल

देखता रहता हूँ मैं तेरी ग़ज़ाली आँखें

ख़ार देहलवी

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देखता रहता हूँ मैं तेरी ग़ज़ाली आँखें
देख तो तू भी ज़रा मेरी सवाली आँखें

चश्म-ए-आहू से न नर्गिस से है तश्बीह दुरुस्त
हैं मिसाल आप ही वो अपनी निराली आँखें

बरहमी हुस्न को कुछ और जिला देती है
वो जमाली तेरा चेहरा वो जलाली आँखें

आ के हर रोज़ तसव्वुर में बना जाती है
एक रंगीन सी तस्वीर ख़याली आँखें

ख़त पढ़े या न पढ़े आए न आए वो शोख़
'ख़ार' क्यूँ भेज न दें देखने वाली आँखें