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उसी की दास्तानें हैं उसी की क़िस्सा-ख़्वानी है | शाही शायरी
usi ki dastanen hain usi ki qissa-KHwani hai

ग़ज़ल

उसी की दास्तानें हैं उसी की क़िस्सा-ख़्वानी है

ख़ार देहलवी

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उसी की दास्तानें हैं उसी की क़िस्सा-ख़्वानी है
वो लुत्फ़-ए-ख़ास जो मुझ पर तिरा ऐ यार-ए-जानी है

न जा ज़ालिम अभी तो तिश्ना-ए-दीदार हैं आँखें
ज़रा दम ले अभी तो दास्तान-ए-ग़म सुनानी है

मोहब्बत ज़ुल्फ़ का आसेब जादू है निगाहों का
मोहब्बत फ़ित्ना-ए-महशर बला-ए-ना-गहानी है

बुझी हसरत का नौहा है दिल-ए-मरहूम का मातम
ब-अल्फ़ाज़-ए-दिगर ये शेर-ख़्वानी सोज़-ख़्वानी है

घराना है हमारा 'दाग़' का हम दिल्ली वाले हैं
ज़माने में मुसल्लम 'ख़ार' अपनी ख़ुश-बयानी है