सोज़िश-ए-ग़म ब-रू-ए-कार आई
आह भी लब पे शोला-बार आई
चश्म-ए-गिर्यां की आबयारी से
दिल के दाग़ों पे फिर बहार आई
दस्त-ए-वहशत की कार-फ़रमाई
ता-ब-दामान-ए-तार-तार आई
तेरे दीवाने क्या भला जानें
कब ख़िज़ाँ आई कब बहार आई
कस्मापुर्सी का उफ़-रे ये आलम
याद हम को जफ़ा-ए-यार आई
देखो वो छाई ऊदी ऊदी घटा
मय-गुसारों की ग़म-गुसार आई
सू-ए-गुलशन जो आज आ निकले
यार की याद बार बार आई
भीनी भीनी किसी बदन की महक
बू-ए-गेसू-ए-मुश्क-बार आई
ग़ुंचा ओ गुल का देख कर जौबन
याद-ए-महबूब-ए-गुल-अज़ार आई
है जवानी ख़ुद अपनी मश्शाता
हुस्न को किस क़दर निखार आई
'ख़ार' उल्फ़त की बात जाने दो
ज़िंदगी किस को साज़गार आई
ग़ज़ल
सोज़िश-ए-ग़म ब-रू-ए-कार आई
ख़ार देहलवी