तुम्हें याद ही न आऊँ ये है और बात वर्ना
मैं नहीं हूँ दूर इतना कि सलाम तक न पहुँचे
कलीम आजिज़
मिरा ख़याल नहीं है तो और क्या होगा
गुज़र गया तिरे माथे से जो शिकन की तरह
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
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याद न आने का व'अदा कर के
वो तो पहले से सिवा याद आया
करामत बुख़ारी
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तआक़ुब में है मेरे याद किस की
मैं किस को भूल जाना चाहता हूँ
कौसर मज़हरी
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तुझे कुछ उस की ख़बर भी है भूलने वाले
किसी को याद तेरी बार बार आई है
कौसर नियाज़ी
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वो मिल न सके याद तो है उन की सलामत
इस याद से भी हम ने बहुत काम लिया है
कौसर नियाज़ी
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चमक रहे थे अंधेरे में सोच के जुगनू
मैं अपनी याद के ख़ेमे में सो नहीं पाया
ख़ालिद मलिक साहिल
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