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उरूज औरों को कुछ दिन है अहरमन की तरह | शाही शायरी
uruj auron ko kuchh din hai ahrman ki tarah

ग़ज़ल

उरूज औरों को कुछ दिन है अहरमन की तरह

कमाल अहमद सिद्दीक़ी

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उरूज औरों को कुछ दिन है अहरमन की तरह
फ़रोग़ किस को है रिंदों के बाँकपन की तरह

मिरा ख़याल नहीं है तो और क्या होगा
गुज़र गया तिरे माथे से जो शिकन की तरह

ये सर-ज़मीन-ए-गुल-ओ-लाला सो भी जाती है
लिबादा बर्फ़ का ओढ़े हुए कफ़न की तरह

कभी तो गुज़रूँगा इस रहगुज़ार से हो कर
ख़ुद अपनी ताक में बैठा हूँ राहज़न की तरह

ख़िज़ाँ का ख़ौफ़ मुझे खाए जा रहा है 'कमाल'
चिनार सुर्ख़ न हों आतिश-ए-सुख़न की तरह