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लकीरों को मिटाना चाहता हूँ | शाही शायरी
lakiron ko miTana chahta hun

ग़ज़ल

लकीरों को मिटाना चाहता हूँ

कौसर मज़हरी

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लकीरों को मिटाना चाहता हूँ
मुक़द्दर ही गँवाना चाहता हूँ

तआक़ुब में है मेरे याद किस की
मैं किस को भूल जाना चाहता हूँ

गिरा था बोझ कोई सर से मेरे
उसी को फिर उठाना चाहता हूँ

सुन ऐ दुनिया मैं अपना क़द घटा कर
ज़रा तुझ को झुकाना चाहता हूँ

मैं रिश्तों के ख़स-ओ-ख़ाशाक से फिर
नया इक घर बनाना चाहता हूँ

मैं बे-मस्कन हुआ हूँ जब से 'कौसर'
तिरे दिल में ठिकाना चाहता हूँ