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ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था | शाही शायरी
KHayal lams ka kar-e-sawab jaisa tha

ग़ज़ल

ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था

अबरार आज़मी

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ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था
असर सदा का भी मौज-ए-शराब जैसा था

वरक़ नुचे हुए सब लफ़्ज़ ओ मा'नी गुम-सुम थे
ये बात सच है वो चेहरा किताब जैसा था

तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहा
किसी की याद का नश्शा शराब जैसा था

उदास ज़र्रों के हम-राह कोई फिरता रहा
ख़मोशियों का बयाबाँ सराब जैसा था

इक उम्र खोई तो ये राज़ मुझ पे फ़ाश हुआ
ख़याल-ए-महर-ओ-वफ़ा नक़्श-ए-आब जैसा था