ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
याद आते हैं बहुत दिल को दुखाने वाले
अख़्तर सईद ख़ान
अब जी में है कि उन को भुला कर ही देख लें
वो बार बार याद जो आएँ तो क्या करें
अख़्तर शीरानी
भुला बैठे हो हम को आज लेकिन ये समझ लेना
बहुत पछताओगे जिस वक़्त हम कल याद आएँगे
अख़्तर शीरानी
कुछ इस तरह से याद आते रहे हो
कि अब भूल जाने को जी चाहता है
अख़्तर शीरानी
मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुम से लेकिन
आज तक दिल से मिरे याद तुम्हारी न गई
अख़्तर शीरानी
याद आओ मुझे लिल्लाह न तुम याद करो
मेरी और अपनी जवानी को न बर्बाद करो
अख़्तर शीरानी
एक तुम्हारी याद ने लाख दिए जलाए हैं
आमद-ए-शब के क़ब्ल भी ख़त्म-ए-सहर के बाद भी
अली जव्वाद ज़ैदी