आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब में
लेकिन ख़बर नहीं कि बुलाया कहाँ गया
फ़ैसल अजमी
इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
फ़ानी बदायुनी
मेरा हर ख़्वाब तो बस ख़्वाब ही जैसा निकला
क्या किसी ख़्वाब की ताबीर भी हो सकती है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
दिखाई देता है जो कुछ कहीं वो ख़्वाब न हो
जो सुन रही हूँ वो धोका न हो समाअत का
फ़ातिमा हसन
ख़्वाबों पर इख़्तियार न यादों पे ज़ोर है
कब ज़िंदगी गुज़ारी है अपने हिसाब में
फ़ातिमा हसन
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख़्वाब तो अच्छा हो
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं
तिरे तकिए के नीचे भी हमारे ख़्वाब रक्खे हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर