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कहो तो नाम मैं दे दूँ इसे मोहब्बत का | शाही शायरी
kaho to nam main de dun ise mohabbat ka

ग़ज़ल

कहो तो नाम मैं दे दूँ इसे मोहब्बत का

फ़ातिमा हसन

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कहो तो नाम मैं दे दूँ इसे मोहब्बत का
जो इक अलाव है जलती हुई रिफ़ाक़त का

जिसे भी देखो चला जा रहा है तेज़ी से
अगरचे काम यहाँ कुछ नहीं है उजलत का

दिखाई देता है जो कुछ कहीं वो ख़्वाब न हो
जो सुन रही हूँ वो धोका न हो समाअत का

यक़ीन करने लगे लोग रुत बदलती है
मगर ये सच भी करिश्मा न हो ख़िताबत का

सँवारती रही घर को मगर ये भूल गई
कि मुख़्तसर है ये अर्सा यहाँ सुकूनत का

चलो कि इस में भी इक-आध काम कर डालें
जो मिल गया है ये लम्हा ज़रा सी मोहलत का